6.1.2009

मौज से दिल को बहला लेता हूं

1-
मौज से दिल को बहला लेता हूं
दिल किया तो गीता का उपदेश पलट लेता हूं
मन किया तो कुरान की आयतों को सलाम कर लेता हूं
लेकिन हमारे सोचने-समझने से क्या होगा
गीता-कुरान पढ़ने-पढ़ाने से क्या होगा
मुल्क की हालात ही कुछ ऐसी है
सुनने-सुनाने से क्या होगा
दिल किया तो किसी को हिंदू- तो किसी को मुसलमां कह दिया
मैं तो बस मौज से दिल को बहला लेता हूं.........

2-
मुझे नहीं है पता हमारे मुल्क की रगों में किसकी हस्ती है
कहीं पर हिंदुओं की चलती है तो कहीं मुसलमां की बस्ती है
कहीं किसी का दिल सुलग रहा तो कहीं किसी का घर जल रहा
जिधर नजर उठाओं हर शख्स परिशां सा दिखता है
महफूज रहकर भी खौफ के साये में जीता है
हर आदमी गली से से निकलकर किसी भीड़ में अब गुम हो लेता है
मैं भी भीड़ में खड़ा होकर हर शख्स के चेहरे को भूला देता हूं
मैं तो मौज से दिल को बहला लेता हूं.....

3-
पाक कुरान की आयतों पर अब शरीयत का जोर चलता है
हर मुसलमां के सीने पर अब मुल्लों का खंजर बजता है
गीता पाठ छोड़कर अब हिंदू परिषद का आदेश चलता है
हर हिंदुओं के दिलों में बजरंगियों का खौफ बसता है
हमारे मुल्क की हालात ही कुछ ऐसी है
धर्म और कौम के अब मायने बदलने लगे हैं
अब तो इस खौफनाक खेल में हम-सब शरीक हो चले हैं
मैं तो लिखकर अपने दिल को समझा लेता हूं
मैं तो मौज से दिल को बहला लेता हूं......

गौरी शंकर

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